वाजसनेयी संहिता वाक्य
उच्चारण: [ vaajesneyi senhitaa ]
उदाहरण वाक्य
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- वाजसनेयी संहिता (३०।१७) में “हिरण्यकार तुला' का निर्देश है।
- वाजसनेयी संहिता (३०।१७) में “हिरण्यकार तुला' का निर्देश है।
- ए क वैदिक संहिता का नाम है वाजसनेयी संहिता ।
- का एक नाम वाजसनेयी संहिता भी है क्योंकि याज्ञवल्क्य वाजसनेयी इसके
- वाजसनेयी संहिता का वासस्पल्पूली (धोबिन) स्मृतियों के रजक शब्द का ही द्योतक है।
- Balloon title = ” देखिए इसी प्रकार के प्रयोग में वाजसनेयी संहिता, 4 ।
- ' यह उदाहरण अथर्ववेद और वाजसनेयी संहिता में भी आया है-व्रतमुपैष्यन् ब्रूयादग्ने व्रतपते व्रतं चरिष्यामीति।।
- शुक्लयजुर्वेद की विषयवस्तु-शुक्लयजुर्वेद का एक नाम वाजसनेयी संहिता भी है क्योंकि याज्ञवल्क्य वाजसनेयी इसके प्रथम आचार्य थे।
- वाजसनेयी संहिता (23-30-31): “जब हिरन खेत को खा जाता है तो खेत वाला हिरन से प्रसन्न नहीं होता।
- (5) वाजसनेयी संहिता: (18-48): “हम लोगों को, ब्राह्मणों को, राजन्यों को, शूद्रों को तथा आयोर्ं को अशीर्वाद देते हैं।
- यजुर्वेद तैत्तरीय संहीता 1-8-6 तथा वाजसनेयी संहिता 3-, 57,63 में रुद्र के साथ अम्बिका का उल्लेख मात्र है।
- सामवेद संहिता के तेरह सौ उन्चाववें मन्त्र में तथा वाजसनेयी संहिता के उन्तीसवें अध्याय के सत्ताइसवें मन्त्र में भी ‘नराशंस ' विषयक वर्णन उप्लब्ध होता है।
- ' संसर्प ' एवं ' अंहसस्पति ' शब्द वाजसनेयी संहिता [7] में तथा ' अंहसस्पतिय वाजसनेयी संहिता [8] में आए हैं।
- ' संसर्प ' एवं ' अंहसस्पति ' शब्द वाजसनेयी संहिता [7] में तथा ' अंहसस्पतिय वाजसनेयी संहिता [8] में आए हैं।
- धर्मसूत्रा तथा वाजसनेयी संहिता के बारे में यह कह देना उचित है कि ये सब उन लोगों कि लिखे हुए हैं जो शूद्रों के शत्राु हैं।
- (3) वाजसनेयी संहिता: (18-48) “हे अग्नि, ब्राह्मणों में मुझे तेज दो, राजाओं में तेज दो, वैश्यों और शूद्र्रों में तेज दो, मुझे तेज पर तेज दो।”
- सामवेद संहिता के तेरह सौ उन्चाववें मन्त्र में तथा वाजसनेयी संहिता के उन्तीसवें अध्याय के सत्ताइसवें मन्त्र में भी ‘ नराशंस ' विषयक वर्णन उप्लब्ध होता है।
- शतपथ ब्राह्मण, पंचविश ब्राह्मण, गौपथ ब्राह्मण, ऐतरेय आरण्यक, कौशितकी आरण्यक, सांख्यायन आरण्यक, वाजसनेयी संहिता और महाभारत इत्यादि में वर्णित घटनाओं से उत्तर वैदिककालीन गंगा घाटी की जानकारी मिलती है।
- शतपथ ब्राह्मण, पंचविश ब्राह्मण, गौपथ ब्राह्मण, ऐतरेय आरण्यक, कौशितकी आरण्यक, सांख्यायन आरण्यक, वाजसनेयी संहिता और महाभारत इत्यादि में वर्णित घटनाओं से उत्तर वैदिककालीन गंगा घाटी की जानकारी मिलती है।
- सामवेद संहिता के 1319 वें मंत्र में और वाजसनेयी संहिता के 28 वें अध्याय के 27 वें मंत्र में भी ‘ नराशंस ' के बारे में ज़िक्र आया है।
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